पिछले दशकों में स्त्रियों का उत्पीड़न रोकने और उन्हें उनके हक दिलाने के बारे में बड़ी संख्या में कानून पारित हुए हैं। अगर इतने कानूनों का सचमुच पालन होता तो भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव और अत्याचार अब तक खत्म हो जाना था। लेकिन पुरुषप्रधान मानसिकता के चलते यह संभव नहीं हो सका है। आज हालात ये हैं कि किसी भी कानून का पूरी तरह से पालन होने के स्थान पर ढेर सारे कानूनों का थोड़ा-सा पालन हो रहा है, लेकिन भारत में महिलाओं की रक्षा हेतु कानूनों की कमी नहीं है। भारतीय संविधान के कई प्रावधान विशेषकर महिलाओं के लिए बनाए गए हैं। इस बात की जानकारी महिलाओं को अवश्य होना चाहिए।
अपने कर्त्तव्य के प्रति एक महिला हमेशा जागरूक रहती है की उसकी किसके प्रति क्या ज़िम्मेदारी है लेकिन अपने अधिकारों के बारे में वो ९० प्रतिशत अनजान है इसी सिलसिले में हमने सोचा क्यूँ न महिलाओ को उनके अधिकारों ख़ास तौर पर कानूनी अधिकारों के बारे में बताएं जिससे वो उनका वो ज़रूरत पड़ने पर फायदा उठा सकें.इसके लिए हमने बात की अधिवक्ता मेघा बाजोरिया पोदार से जो हाई कोर्ट के फ्री लीगल ऐड सर्विसेज के पैनल पर मेम्बर भी हैं.
मेघा ने बताया कई अपराध पता नही लग पाते है या फिर रिपोर्ट नही हो पातें हैं सिर्फ इसलिये कि महिलायें अपने अधिकारों से अवगत नहीं होती है. अपराधों की बढ़ती संख्या के खिलाफ लड़ने के लिए यह जरुरी है कि महिलायें अपने कानूनी अधिकारों के बारे में जानती हो. भारतीय संविधान महिलाओं को कई अधिकार प्रदान करता है.
आइये बात करते हैं घर से बाहर जाकर ऑफिसों में काम करने वाली महिलाओ की |
किसी भी कंपनी में जिसमें 10 से भी ज्यादा कर्मचारी है वहां कार्यस्थल पर महिलाओं की यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013) एक्ट का होना ज़रूरी है |बड़ी कंपनी में तो होना ही चाहिए जिसमे महिलाएं अपनी शिकायत दर्ज करवा सकती हैं | बड़ी कमपनी में इसमें एक एनजीओ को होना आवश्यक है ताकि निष्पक्ष न्याय हो सके. हाल के दिनों में यौन उत्पीड़न एक बड़ी समस्या है. यौन उत्पीड़न का मतलब होता है शारीरिक संपर्क और उसके आगे जाना, या यौन उत्पीड़न की मांग या अनुरोध, या यौन से संबंधित टिप्पणियां या अश्लीलता दिखाना या यौन प्रकृति के किसी अन्य अवांछित शारीरिक, मौखिक, गैर-मौखिक आचरण शामिल हैं. चाहे वह पुरुष मालिक या सहयोगी द्वारा किया जाता है, आप मामलें में पुलिस से संपर्क कर सकते हैं और शिकायत दर्ज करा सकते हैं.
घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा (2005) एक्ट ...इसमें शारीरिक मानसिक,भावनात्मक और आर्थिक सभी किस्म का अत्याचार आता है और जिसके खिलाफ महिला शिकायत दर्ज कर सकती है . इसमें महिला अपने साथी या परिवार के सदस्यों के खिलाफ शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक या मनोवैज्ञानिक परेशानी की शिकायत दर्ज करा सकती है जो उनके जीवन और शांतिपूर्ण अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर रहे हो. इस कानून में संशोधन के बाद विधवा महिलाओं, बहनों और तलाकशुदा महिलाओं के लिए भी इस तरह के अधिकार बढ़ाए गए है.मेघा बताती है की इसमें मेंटेनेंस,प्रोटेक्शन राइट्स और रेजिडेंस राईट भी आता है .डोमेस्टिक वायलेंस में महिला मजिस्ट्रेट के पास शिकायत लेकर जा सकती है कोर्ट के पास उसे उसे मेंटेनेंस और प्रोटेक्शन दिलवाने का अधिकार है अगर महिला वकील अफ्फोर्ड नहीं कर सकती तो कोर्ट उसे मुफ्त में वकील मुहया करवाएगा जो उसके लिए केस लडेगा .जब तक तलाक़ नहीं हो जाता महिला को इनेटेरीम मेंटेनेंस दिए जाने का प्रावधान है |
पति की 20 से 25 प्रतिशत सम्पति पर पत्नी का अधिकार होता है अगर वो खुद उससे ज्यादा नहीं कमा रही है तो|
घरेलू हिंसा के ज़्यादातर मामलों में पति पत्नी को घर से निकाल देता है, जिसके डर से बहुत-सी महिलाएं घरेलू हिंसा का विरोध नहीं कर पाती थीं. इस बात को ख़ास तवज्जो देते हुए क़ानून में यह प्रावधान रखा गया है कि विवाद के दौरान भी पत्नी को उसी घर में रहने का पूरा अधिकार है. पति उसे घर से नहीं निकाल सकता. अगर उसने ऐसा किया, तो यह क़ानूनन जुर्म होगा, जिसके लिए उसे सज़ा मिल सकती है.
अगर महिला उस घर में नहीं रहना चाहती और कोर्ट से सुरक्षित स्थान की मांग करती है, तो कोर्ट पति या पार्टनर को महिला के लिए अलग निवास और मेंटेनेंस की सुविधा का आदेश दे सकता है.
पति और ससुरालवालों का जो लिविंग स्टैंडर्ड है, उसी मान-सम्मान और लिविंग स्टैंडर्ड से रहने का अधिकार हर पत्नी को है.|
बच्चो में बेटी की शादी हो तब तक औत बेटा 21 साल का हो तब तक उन्हें मेंटेनेंस देने की जिमेदारी पिता की होती है |
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (2005) एक्ट
यह अधिनियम सभी हिंदू महिलाओं को पितृ संपत्ति पर पूर्ण नियंत्रण और शक्ति देने का अधिकार देता है. 2005 में हुये संशोधनों ने परिवार में महिला और पुरुष के बीच संपत्ति वितरण अधिकारों को और आगे बढ़ाया. बेटियों को विवाह के बाद भी बेटों के बराबर ही संपत्ति पर अधिकार होगा. बेटी चाहे तो अपना हिस्सा भाई को दे सकती है लेकिन उसके लिए भाई को उससे लिखवा कर लेना होगा वरना नहीं.
सदियों से महिलाओं के उत्तरदायित्वों को इतना गौरवान्वित किया गया कि वो अपने अधिकारों से अनजान ही रहीं या यूं कहें कि उन्हें जानबूझकर अनजान रखा गया, ताकि वे आवाज़ न उठा सकें. आज भी हमारे देश में महिलाओं का एक बड़ा तबका ऐसा है, जो अपने अधिकारों से अनजान है|
एक महत्वपूर्ण जानकारी अधिवक्ता मेघा ने दी वो वो ये है की माता पिता अपने बच्चो से मेंटेनेंस की मांग कर सकते हैं अंडर सेक्शन 125ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर कोर्ट | अगर बच्चे माता पिता की देखभाल नहीं कर रहे तो माता पिता मेंटेनेंस की मांग कर सकते हैं दूसरा अगर माता पिता ने अपनी सम्पति बच्चो की नाम कर दी है और फिर बच्चे उनका ख्याल नहीं रख रहे तो पेरेंट्स वो प्रॉपर्टी रिवोक कर सकते हैं इस बात का उन्हें पूरा अधिकार है |
महिलाओ को अपने कानूनी अधिकार पुलिस से सम्बंधित क्या है वो जानना बहुत ज़रूरी है ताकि वो कहीं शोषण का शिकार न हो उनके साथ अन्याय न हो |
पुलिस से सम्बंधित अधिकार
महिला सशक्तिकरण को बहुत ही आसान शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है। इससे महिलाएँ शक्तिशाली बनती हैं जिससे वो अपने जीवन से जुड़े हर फैसले को खुद ले सकती हैं और अपने परिवार तथा समाज में अच्छी तरह से रह सकती हैं। समाज में महिलाओं के वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिए उन्हें सक्षम बनाना महिला सशक्तिकरण कहलाता है।
महिला सशक्तिकरण का उद्देश्य होता है महिलाओं को शक्ति प्रदान करना जिससे वे हमारे समाज में पीछे न रह सके और पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर फैसलें ले सकें तथा गर्व से अपना सिर उठाकर चल सकें। महिला सशक्तिकरण का मुख्य लक्ष्य महिलाओं को उनका अधिकार दिलाना है।इसके लिए ज़रूरी है वो अपने अधिकारों को जाने जिन्हें नहीं मालूम उन्हें बताये हमने एक कोशिश की है उम्मीद करते है इस लेख में दी गयी जानकारी आपके काम आएगी | महिलाओ के कानूनी अधिकारों से हमें परिचित कराने के लिए अधिवक्ता मेघा का बहुत बहुत धन्यवाद्.|
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