मिसेज बसंती
मिसेज बसंती बहुत ही व्यस्त गृहिणी हैं। उनके किस्से तो बड़े ही अनोखे और मजेदार थे। मैंने उनके खाने की बहुत तारीफ़ सुनी थी। बड़ी ख्वाहिश थी कि उनसे मिलें
मिसेज बसंती मेरे सहकर्मी वाधवा की धर्म पत्नी हैं।
एक दिन वाधवा जी के साथ इक्कठे लंच करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हम दोनो ने अपना अपना लंच बॉक्स खोला। वाधवा जी से उनकी पत्नी के खाने की बहुत तारीफ सुनी थी। सोचा आज तो खूब स्वादिष्ट भीजन मिलेगा।
जैसे ही उनका डिब्बा खुला। हम दोनों हल्के बक्के रह गये। बसंती जो की इतनी तारीफ सुनने के बाद यह नज़ारा तो देखने लायक था। मेरी हँसी कहीं बाहर न निकल जाए, झट से मैंने मुँह हाथों से डक लिया।
वाधवा जी का डिब्बे में भोजन तो नहीं था बल्कि उसमें खाने की बजाय प्याज ओर सब्जी के छिलके थे।
बेचारे शर्मसार हुए बड़ी बड़ी आँखों को अपने चश्मे के पीछे छिपाने की कोशिश कर रहे थे।
तुरंत ही उन्होंन पत्नी जी से बात करने को फोन लगाया कि सामने से उनका फ़ोन आ गया।
सामने से वह बेचारी माफ़ी मांग रही थी कि गलती से डिब्बे में सब्ज़ी डालने की बजाए सब्जी और कांदे के छिलके भर दिये।
बेचारे मिस्टर वाधवा फिर भी पत्नी की तरफदारी करते हुए बोले बसंती जी बहुत ही अच्छा खाना बनाती है। बेचारी सुबह सुबह जल्दबाज़ी में ऐसी गलती कर बैठती है।
मैंने भी उनकी हाँ में हाँ मिलाते हुआ कहा," कोई बात नहीं,"। मैं समझती हूं वाधवा जी। आप मेरे साथ खाना खा लें।
।। नीनू अत्रा ।।।
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