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"मी तुझी आई"

"मी तुझी आई"

बिखरे बाल, चहरे पर तनाव का भाव, लड़खड़ाकर बोलने का अंदाज,  दिल में जगह बनाती शब्दों की नजाकत। उसमें पहली ही नज़र में मुझे अपनापन नज़र आया था।            कुछ लोगों का अंदाज पहली ही नज़र में अपना बना लेता है। घर में आज कल अजीब सा माहौल था। जैसे ही खाने की टेबल पर सब बैठते, वैसे ही बिना खाना खाया बिना सब उठ खड़े होते।
गुंजन को देखकर कुछ राहत की सांस मिली।
मैंने उससे सीधे से पूछा, तुम्हें खाना बनाना आता है ना?
जी, मैडम आता है।
मैं केवल खाना बनाने का ही काम करती हूँ।
आज हमारे घर में उसका खाना बनाने का पहला दिन था।
गुंजन बेहद ही सुलझी, समझदार लड़की थी।
आज मैं उससे पहली बार मिली थी। साधारण सी दिखने वाली गुंजन गुणों से भरपूर थी।
शायद नयी होने की वजह से वह काफी शांत सी थी।
पहले दिन तो हमसे कोई बातचीत नहीं, बीच बीच में कुछ काम होता तो "भाभी भाभी" कह कर बुला लेती। रसोई की उसे कुछ जानकारी जो नहीं धी।
मुझे रसोई में समान इधर उधर बिखरा हुआ बिल्कुल पसंद नही है। शायद यही कारण था कि मेरा टोकना उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था।
दरअसल वह मुझे दीदी कहते ही नहीं थे मानती भी थी।
यहीं कारण भी था, जब वह रसोई में होती। मैं रसोई से बाहर होती।
अपने हर मसले पर मेरी राय ज़रूर लेती थे।
सुबह के सात बज गये थे और गुंजन का कोई अता पता न था। मेरी परेशानी बढ़ती जा रही थी।
उसे काॅल करने के लिए फ़ोन उठाया ही था कि डोरबॅल बजी। कुछ परेशान सी लग रही थी।
मैंने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया।
सोचा! शायद वह मुझे बताना नहीं चाहती।
मन होगा तब बता देगी।
अब तक पूजा भी आ गयी थी। पसीने से लतपथ,सांस फूली हुई, उसके पसीने की महक पूरे घर में फैल गयी, इसी से मैंने अंदाजा लगा लिया कि बाहर बहुत गर्मी है।। पूजा हमारे घर बर्तन, साफ-सफाई का काम करती थी।
उसे देखकर  लग रहा था ,जैसे कोई जंग से आई हो, मैंने कहा," थोड़ी सांस ले ले लड़की, बैठ जा पानी पी ले।
पर कहाँ," पूजा के पास तो साँस लेने की फुर्सत नहीं।
गुंजन ने उसे चिढ़ाते हुए  कहा," प्राइम मिनिस्टर के बाद तो यही बिज़ी है दीदी।
गुंजन को पुजा ने ही हमारे घर काम पर लगाया था।
पहली बार मैंने गुंजन के मुँह से आवाज़ सुनी थी।
गुंजन का बनाया खाना सबको पसंद आया।
भिन्डी की सब्ज़ी और दाल किसी फ़ाइव स्टार होटल से कम न था। गुंजन अपने काम में बेहतरीन साबित हुई। खुशी इस बात की थी कि संयमित, संगीत और संयम को  उसका पकाया खाना भा गया था। वर्ना घर में हररोज की महाभारत से में परेशान हो गयी थी।।
गुंजन रसोई से बाहर आई तो, लगा जैसे वह अपने आंचल  में कुछ समेट रही है, मुझे लगा उसने कुछ चुराया है।
अचानक मेरे मुख से निकल गया।
क्या छुपा रही हो?
उसके चहरे का रंग उड़ गया।
कुछ नही भाभी, उसने जवाब दिया। इस बार उसकी आँखों में पानी था।
गिले हाथ अपने आंचल से साफ कर रही हूँ।
मैं चोर नहीं हूँ, भाभी।
आज उसका मूड अच्छा न था, और मैंने खामख्वाह उस पर शक किया।
अपने इस बर्ताव पर में बेहद शर्मसार थी।
उसका मन खराब हुआ था वर्ना सुबह से तो वह ठीक ही थी।
इतने मे पूजा बोल उठी, भाभी आज हाईवे पर बहुत बड़ा accident हुआ है। उसी की बात कर रहे थे। कहते हैं कोई साईकिल चलाते बच्चे को पीछे से ट्रक ने ठोकर मार थी। ट्रक वाला बच्चे को वही तड़का छोड़कर वहाँ से भाग गया। काफी भीड़ वहाँ जमा हो गयी थी। पुलिस भी बहुत थी मैं तो वहाँ से निकल गई।
पता नहीं, " उस बच्चे का क्या हुआ  होगा।
हे राम ! कैसे अंधे की तरह गाड़ी चलाते हैं। किसी की जान की कोई किमत ही नहीं रही।

गुंजन बोल उठी," ऐसे हादसे कैसे घर तबाह कर देते हैं मै अच्छी तरह से जानती हूँ।
पूजा गुंजन को हौसला देते हुए  बोली,"हिम्मत रखो गुंजन, कुछ चीज़े अपने हाथ में नहीं होती।
बहुत बुरा हुआ, जिसका बच्चा था उन पर क्या बीत रही होगी। मैं समझ सकती हूँ।
भावुक होना तो अपेक्षित था।
गुंजन तो चली गई। दूसरे काम पर जो जाना था।
पूजा मुझ पर  गुस्सा हो गयी। क्या भाभी आप भी न। भरोसेमंद है गुंजन।
अच्छे परिवार से है।
उसके जाते ही पुजा बोली, भाभी इसके साथ बहुत बुरा हुआ था। उसका  डर आज भी उसके मन में बैठा हुआ है।
उस हादसे ने उसकी खुशी चैन सब ले लिया।

आज भी आधी रात में डर कर राती है, चिल्लाती है।
ऐसा क्या हुआ था?
भाभी म! रमेश और गणेश दोनों गुंजन की आँखों के तारे थे।
रमेश बीस साल का हो गया था, पर खाना माँ के हाथों से खाता था। उस दिन बहुत बारिश हो रही थी। भारी बारिश के कारण सब भी देर रात घर पहुँचे।
आज गुंजन इतनी थक गयी थी कि रमेश से बोली, आज तुम अम्मा के हाथ से खाना खा लो।
पर ! यह कैसी जिद्द थी कि रमेश को माँ के हाथों से ही  खाना खाना था। 
खाने को लेकर नाराज हो गया।
उस दिन उसने न माँ के हाथों से खाना खाया न अम्मा (दादी) के हाथों से खाना खाया। बोला आज से में किसी के भी हाथो से खाना नही खाउंगा।
गुंजन बार-बार बोले जा रही थी कि तुम अम्मा के हाथ से खाना खा लो। मेरी तबियत ठीक नहीं है।
तब गुंजन फैक्ट्री में काम करती धी।
उस दिन सुरेश रात को भूखा-प्यास ही सो गया।
परमात्मा के खेल वोही जाने।
अगले दिन वह काम के लिए निकला। उस दिन बारिश बहुत  हो रही थी।
माँ आवाज़े देते रह गयी बेटा," खाने का डिब्बा ले जा"।
पर ! वो तो ऐसे घोड़े पर सवार था पूछो मत।
मुझे देर हो गयी है आई।
खाने का डिब्बा माँ के हाथ में ही पकड़े रह गया।
भाभी, सारा दिन गुंजन इतनी दुखी रही कि मैं क्या बताऊं। 
दिनभर उसने कुछ नही खाया। यही सोच सोच कर दुखी होती रही कि मेरी वजह से पहली बार मेरा बेटा भूखा सो गया। डिब्बा भी नहीं ले गया, बस कोसती रही खुद को।
सुबह से ही उसने सुरेश की मनपसंद पुरनपोली, खीर बनाई।
भगवान से दिन भर अपनी गलती की माफी मांगी रही।
छोटा बेटा बोला, माँ दादा को एक दिन अपने हाथ से खाना न खिलाने पर इतना सारे पकवान बना लिए।
जब आपके हाथों से खाएंगे ही नहीं तो क्या करोगी? माँ ने गुस्से से गिलास ही उस पर दे मारा।
इतने में ही पुलिस स्टेशन से फ़ोन आया, एक लाश की शनाख्त के लिए बुलाया है।
उमा भाऊ, गणेश, गुंजन, हम सब चाली वाले नंगे पांव ही भागे। हस्पताल में कपड़े मे लिपटे बालक पर से कपड़ा हटाने तक की दूरी अंगारों पर चलने सी थी। दिल दहल जाता है, भाभी।
ऐसे इम्तिहान में  परमात्मा किसी दुश्मनको भी न डाले।
मन देवा को लाखों-लाखों बार यही प्रार्थना कर रहा था कि यह सुरेश न हो।
इस बार हम सब गलत साबित होना चाहते थे।
      अब जिंदगी और मौत के बीच में एक पतली सफेद चादर थी। जिसके उस पार किसी माँ की अपने बेटे को देखने की लालसा और  दूसरे पार लंबी खामोशी और खाली बेजान आखें।
जैसे ही डाक्टर ने कपड़ा हटाया।
गुंजन मृतक शरीर पर फूट-फूटकर रोने लगी।
"मी तुझी आई"  आँखे खोल बाला, आँखें खोल।
देख ! मैं तुझे लेने आई हूँ।
चल घर मुलगा।।
तुझा साठी पुरनपोली बनाई है।
आज मैं अपने हाथ से खाना खिलाउंगी।
गलती हो गयी बेटा मुझे इतनी बड़ी सजा न दे।
चल घर, मैं तेरी  आई, तुझे लेने आई हूँ।
सबने उसे चुप कराने, समझाने की बहुत कोशिश की।
पर ,वह किसी की सुन ही कहां रही थी।
इस हादसे का जिम्मेदार खुद को जो मान रही थी।
रोते रोते वहीं बेहोश हो गयी।
भाभी भगवान की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता।
माँ की ममता थी कि कुदरत का करिश्मा। जिस माल की डिलीवरी के लिए उसे जाना था उसकी जगह कोई  औऔर चला गया था।
यह लाश उसके बेटे की नहीं थी।
उसका बेटा जिंदा था
इससे पहले की गुंजन हकीकत जान पाती वह सदमे की वजह से कोमा में चली गयी।
अपनी बेटे पर आने वाली सारी बलाएं, मुसीबते जैसे उसी ने ले ली हो।
काफी महीनों तक गुंजन हस्पताल में रही।
इस बात से अंजान कि उसका दुलारे को कुछ नहीं हुआ , वह पुरी तरह से सुरक्षित है।
माँ की ममता में बड़ा दम होता है भाभी।।
वह खाना बनाने का काम किसी पैसों की जरूरत के लिए नहीं कर रही।
बल्कि वह खाना खिला कर उसको खुशी मिलती है।
जो पैसे यहां से कमाती है उसका भी खाना गरीबों में बांट आती है। गुंजन की मधुर गूंज ही तो थी जो अपने लाडले को मौत से भी वापिस ले आई।

।। नीनू अत्रा ।।।

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