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कर्मों से महान बनें

दोस्तों!।
दि फर्स्ट लेडी हिंदी पत्रिका के इस सत्र में आपका हार्दिक अभिनन्दन। मुझे उम्मीद है कि आप हमारी इस छोटी-सी कोशिश को ज़रूर सराहेंगैं ।

।।। कर्मों से महान बनें ।।।

दोस्तों धरती हमारी माता है किन्तु आज कितने लोग ऐसे हैं जो सही मायनों में आपनी इस माँ के बारे में सोचते भी हैं।
धरती माता की समृद्धि और उत्थान के लिए उपयुक्त योजनाएं लागू हो रही हैं या नहीं, किसान भाईयों को उनका हक मिल रहा है कि नहीं, आदि अनेकों आवश्यक बातें हैं जिनकी समय समय पर चर्चा होना बेहद आवश्यक है।
जब हम समाज मे बदलाव लाने की बात करते हैं, तो सबसे पहले बदलाव हमें खुद में लाना होगा। संत व समाज सुधारक आचार्य "विनोबा भावे ने धरती माता के उत्थान के लिए जब आपकी सोच बदलेंगी, तब आपके आसपास के लोग भी सकारात्मक हो जाएँगे। बदलाव आप स्वयं महसूस कर सकते हैं।
स्वतंत्र भारत में राम राज्य के स्वप्न को पूरा करने में आजीवन प्रयत्नरत रहने वाले संत व समाज सुधारक आचार्य "विनोबा भावे" उन महान विभूतियों में से हैं। जिनसे देश और जाति का मस्तक गौरव से ऊँचा हो गया। उनका कहना था "मेहनती लोगों को उनका हक मिलना चाहिए"।
परिवर्तन ही एक ऐसा हथियार है जो सतत् है, जैसे रात- दिन, गर्मी-सर्दी यह सब परिवर्तनशील है। यदि हमें ऊँचाई तक पहुँचना है तो हमें अपनी सोच को विस्तृत करना होगा।
परिवर्तन तब तक नहीं होगा जब तक हम पुरानी रूढ़िवादी विचार धाराओं से उपर नहीं उठ पाएँगे। कुछ लोग आज भी रूढ़िवादी विचारधाराओं से जुड़े हुए है , जिस कारण वह प्रगति की ओर अग्रसर नहीं हो पा रहे । चाहे वह बेटी बचाओ अभियान हो, महिलाओं को समाज में समान हक दिलाने की बात हो या फिर साफ़ सफ़ाई की। विचार उच्च हो तो समाज स्वयं उच्चता के शिखर पर पहुँच जाता है।
विनोबा भावे हिमालय पर जाकर तपस्या करना चाहते थे। किन्तु जब उनकी भेंट गांधी जी से हुईं तब वह उनके विचारों से इतने प्रभावित हुए कि उनकी अध्यात्मिक तपस्या ने जनसेवा का रूप लै लिया। जब मनुष्य केवल अपने बारें न सोचते हुए मानवता के बारे में सोचने लगता है तब वह साधारणतया से उपर उठकर महानता के पद पर पहुँच जाता है। सन 1923 में उन्होंने " महाराष्ट्र धर्म "नामक मराठी मासिक पत्रिका प्रकाशित की। सार्वजानिक सभाओं में जन जागृति हेतु भाषण दिए। स्वतंत्रता के पश्चात भारत की गरीब ग्रामीण जनता की ओर उनका ध्यान गया ।उन्होंने "ग्राम स्वराज" का सपना संजोया तथा "भूदान" आंदोलन 1951में आरंभ किया। असंतुष्ट किसानों की रक्तरंजित क्रांति को शांत कर 18 अप्रैल 1957 को पहली बार समाज के सम्मुख हाथ फैलाए। "पोचमपल्ली के एक वृद्ध हरिजन को आठ एकड़ भूमि दान दिलवाकर भूलना यज्ञ आरंभ किया।
ज़रा सोचिये इतना परिवर्तन समाज में उन महान महापुरुष की गहन सोच से आया! यदि समाज में प्रत्येक व्यक्ति परिवर्तन लाने की पहल करे तो हमारा देश विश्व में प्रगति में प्रथम चरण पर होगा?
हमारे किसान अन्य प्रगतिशील देशों के किसानों की तरह सम्रद्ध जीवन व्यतीत कर पाएँगें। उनके भी बड़े बड़े घर, मिलों दूर फ़ैले हुए हरे भरे अपने खेत- खलिहान होंगे। जब जीवन स्मृद्ध होगा तो भ्रष्टाचार स्वयं ख़त्म होगा।
विनोबा भावे पैदल चलने और लोगों से कहते "भूमि माता है", हम सब उनके पुत्र हैं । माता पर उनके पुत्रों का समान अधिकार होना चाहिए, ठीक उसी तरह जिस तरह जल, वायु, धूप पर सबका समान हक है। वह मिलों मील, हजारों किलोमीटर पैदल चले। भूमि हीन किसानों की दुर्दशा सुधारने के लिये दान में प्राप्त 44लाख एकड़ भूमि किसानों को दान में दी। वर्तमान परिस्थिति में किसानों की स्थिति बेहतर होने की जगह ओर दयनीय हो गई है।
जन्म से कोई महान् नहीं होता, अपने कर्मों से हम महान बनते हैं। उन महान महापुरुष ने 1952 में ग्रामदान और संपत्ति दान का अभियान आरंभ किया। बड़े दुख की बात है कि आज उसी मात्रभूमि के लाड़ले पुत्र आत्महत्या करने पर उतारू हैं । गाँवों को आत्मनिर्भर बनाने का जो स्वप्न विनोबा जी ने देखा अभी भी अधूरा है। हमें शक्ति का प्रयोग जन सेवा के लिए करना चाहिए न कि उन्हें डराने के लिए। उन्होंने समाज के लिए अपना सर्वजीवन देश को अर्पित कर दिया, और हम अनेकों लोग मिल कर भी एक काम करने से डरते हैं। आज स्थिति यह है कि रास्ते पर चलते व्यक्ति की सहायता करने में डरते हैं। ऐसे लोग जो अपना जीवन देश की सुख-शांत, समता भाईचारे में समर्पित करते हैं उन्हें विश्व युगों युगों तक याद करता है।
हमें सोचना है कि क्या हम ऐसा काम करेंगें जो हम युगों युगों तक याद किये जायेंगे।

।। नीनू अत्रा ।।।

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